दिसम्बर 2018 को हो जायेंगे “सुखवाड़ा” के २० साल पूरे
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महत्वपूर्ण दायित्वों के चलते अब निःशुल्क प्रकाशन संभव नहीं –
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20 साल का निःशुल्क “सुखवाड़ा” अब सशुल्क होगा –
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भोपाल। अपने विकासशील समाज में ई पत्रिका प्रकाशित कर उसके देश- विदेश में एक सम्मानजनक पाठक वर्ग तैयार कर लेना “सुखवाड़ा” के लिए बेहद सुखद और संतोषप्रद अनुभव रहा है। सुखवाड़ा के रिश्तों पर केंद्रित अंक और विशेषांक जैसे माँ ,पिता ,भाई ,बहन ,पत्नी ,बेटा ,बेटी , विवाह,कृषि ,पवारी मुहावरें ,पवारी लोकोक्ति ,पवारी पहेलियाँ ,विवाह गीत ,बोली भाषा , पवारी परंपरा और संस्कृति आदि इतने लोकप्रिय और संग्रहणीय बन पड़े हैं कि समाज सदस्यों से ज्यादा उन्हें अन्य समाज सदस्यों और विकसित समाजों द्वारा सराहा गया और उसकी विषय वस्तु और सामग्री को जस का तस प्रकाशित कर सुखवाड़ा का मान बढ़ाया गया । इसके अंकों से शोधार्थियों को शोध सामग्री संजोने में सुविधा हुई और जो अपने घर परिवार से दूर रह रहे थे उन्हें समाज और संस्कृति की सीधी जानकारी मिलती रही। इसके विवाह विशेषांकों से कई जोड़े विवाह सूत्र में बंधे और कई जोड़ों को वैवाहिक जीवन जीने का सम्बल मिला। जो जोड़े तलाक की कगार पर खड़े थे वे इसकी पोस्ट से प्रभावित होकर पुनः वैवाहिक जीवन जीने हेतु तैयार होते देखे गए।
20 सालों के इस सफर में “सुखवाड़ा” सदैव सुख बाँटता रहा, निःशुल्क पाठकों तक पहुँचता रहा ,पर अब निःशुल्क प्रकाशन कर पाना और प्रकाशन का व्यय भार उठा पाना संभव प्रतीत नहीं हो पा रहा है अतः इसे जनवरी 2019 से सशुल्क किया जा रहा है। इसका वार्षिक शुल्क मात्र 100 रूपये किया जा रहा है। आशा है ,सुखवाड़ा को अपने पाठकों का प्रेम पूर्ववत प्राप्त होता रहेगा और इसकी सदस्यता ग्रहण कर इसे आगे बढ़ाने और जारी रखने में वृहत पाठक वर्ग रूचि लेकर इसे निर्बाध रूप से जारी रखने में अपने स्तर से हर संभव प्रयास करेगा।
अब जनवरी 2019 से इसे सुखवाड़ा की सदस्यता ग्रहण करने वाले सदस्यों के साथ ही साझा किया जायेगा। वृहत पाठक वर्ग को इससे होने वाली असुविधा के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। कृपया सहयोग और स्नेह बनाये रखने का अनुरोध है। सादर।
आपका “सुखवाड़ा”